Friday 27 January 2012

बेमतलबी दुनिया


जिन्हें मैं अपना समझता हूं और जिन्हें मैं अपना नहीं समझता हूं, दोनों प्रकार के लोगों से मुझे ये सलाह कई बार मिल चुकी है कि दुनिया बड़ी मतलबी है, इसलिए सम्हल कर रहना. पर मैं नहीं सम्हला, कई बार इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा. मानसिक, शारीरिक, आर्थिक और सामाजिक यानि जितनी तरह की यातनाएं या दंड हो सकते हैं, सब झेलने पड़े. अंग्रेजी में एक कहावत है- नो पेन, नो गेन. इतना पेन सहने के बाद एक बात जो मेरा छोटा सा मस्तिष्क (उसके आकार का अंदाजा लगाने के लिए आप पूरी तरह स्वतंत्र हैं.) गेन कर पाया है, वो यह कि दुनिया दरअसल किसी जमाने में मतलबी हुआ करती थी, अब तो वह बेमतलबी हो गई है. उस जमाने में हर किसी का हर किसी से कोई न कोई मतलब हुआ करता था. जैसे जर-जोरू-जमीन का मतलब काफी पॉपुलर था उस जमाने में. पर अब ये सारे मतलब भी लुप्तप्राय: हो गए हैं. दुनिया का आपसे बस इतना ही सरोकार जुड़ा है कि पर्व-त्योहारों पर वो आपका इनबॉक्स फुल कर दे, जन्मदिन पर फेसबुक के वॉल पोस्ट को शुभकामनाओं से पाट दिया जाए. मेरी राय में ये जो सोशलनेटवर्किंग साइट का लाइक ऑप्शन है, वो शर्तिया तौर पर अंग्रेजी के सॉरी शब्द को निगलने वाला है. इसने सॉरी की सीमाओं से परे जाकर अभी से काम करना शुरू कर दिया है. किसी भी अपडेट को लाइक कीजिए और आपकी जिम्मेदारी खत्म. जिस वक्त मैं जनसंचार की पढ़ाई कर रहा था, उस वक्त कम्युनिकेशन के कई मॉडल्स से मेरा वास्ता पड़ा था. बड़े-बड़े परदेसी विद्वानों के बनाए इन मॉडलों का सार यही था कि कम्युनिकेशन तभी सक्सेसफुल हो सकता है जब कहने, दिखाने या लिखने वाले का संदेश सुनने, देखने या पढ़ने वाले को पूरी तरह से समझ में आ जाए. पर अब न तो सेंडर को ढंग से फुर्सत है और ना ही रिसीवर को इतना वक्त है कि वह संदेश का सही तरीके से ग्रहण करे, लेकिन फर्जी फीडबैक आने का सिलसिला अभी भी जारी है. यानि दुनिया के बेमतलबी हो जाने का एक और प्रमाण. बेमतलबी होने से मेरा तात्पर्य ये है कि आप व्यक्ति विशेष के लिए काम के हैं भी और नहीं भी. आपकी राय या मश्विरे का कोई खास बाजार भाव नहीं है. अगर आपने राय दी तो भी ठीक और नहीं भी दी तो कोई आपसे ये पूछने नहीं आएगा कि महाशय, आपने अपनी बहुमूल्य राय क्यों नहीं दी. ये बात अलग है कि हर राय मांगने वाला इस बात का उल्लेख चलन की वजह से जरूर करेगा कि अपनी राय से जरूर अवगत कराएं, क्योंकि आपकी राय बहुमूल्य है (क्योंकि अब हर किसी की राय बहुमूल्य है). आप शायद मुझसे कहेंगे कि तुम इतनी देर से इतना सबकुछ समझ गए हो इसलिए जरूरी है कि इस बेमतलबी दुनिया के तौर-तरीकों से तौबा करने के बजाए इन्हें सीख डालो. पर माफ कीजिएगा, मैं ये काम भी नहीं कर पाउंगा. मुझे जिस विषय की समझ होगी उसी पर अपनी राय दे सकूंगा. मैं आपकी बेमतलबी दुनिया की सदस्यता ग्रहण नहीं कर सकता. मैं अपनी मतलबी दुनिया में रहकर ही अपको मतलबी बने रहने के फायदे बताता रहूंगा. आजीवन!

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